tag:blogger.com,1999:blog-66065904504565751442024-03-13T05:19:43.919-07:00Purohit "Parveen"प्रवीण पुरोहितhttp://www.blogger.com/profile/15341135725748045944noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-6606590450456575144.post-78960808702030188362010-11-17T22:53:00.000-08:002010-11-18T00:19:29.103-08:00मोनू की सूझ<div style="color: red; font-family: "Courier New",Courier,monospace; text-align: center;"><span style="font-size: x-large;"><u><b>मोनू की सूझ</b></u></span></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">जंगल की गुफा में मोनू नमक एक भालू रहता था. वह परोपकारी व दयालु था. दूसरों की भलाई को खुद की भलाई समझता था. इसलिए जंगल में जानवर उससे खुश थे. लेकिन मोनू पिछली दोनों टाँगें ख़राब होने के कारण चल नहीं सकता था केवल रेंग सकता था.</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">सभी जानवर भोजन की तलाश में जाते समय अपने बच्चों को मोनू के पास छोड़ जाते. मोनू बच्चो से खेलता और उनका धयान रखता. जंगल के जानवर भी सदा मोनू का धयान रखते, शिकार से लौटते समय अपने साथ तरह-तरह के जीवों का मांस लेट व मोनू को देते. इस तरह मोनू का जीवन आराम से व्यतीत हो रहा था.</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">सभी जानवर मोबू से खुश थे. मगर जंगल के रजा का बिगडैल राजकुमार शेरू उससे चिढ़ता, हमेशा उसे ''लंगड़दीन बजाये बीन'' कह कर छेड़ता. कभी उसकी पुंछ पकड़ कर दूर तक घसीट कर ले जाता, कभी किसी खड्डे में फेंक आता तो कभी पहाड़ पर छोड़ आता. इस तरह शेरू ने मोनू का जीना हरम कर रखा था.</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">जंगल के राजा शेर सिंह बूढ़े हो चुके थे. उसके पास शेरू की शिकायतें आये दिन आती. मोनू के मित्र राजा का पास गए. राजस मोनू के मित्रों की बात सुनकर बहुत दुखी हुए. उन्होंने शेरू को बुलाकर डांटा- '' तुम राजकुमार हो अपनी परजा के साथ अच्छा व्यवहार किया करो. मैं तो बूढ़ा हो चूका हूँ.'' अब आगे राज-काज तुम्हें ही देखना है.</div><div style="text-align: justify;">मगर राजकुमार शेरू पर उसका कोई असर नहीं था. वह आसमान की तरफ मुंह उठाकर दहाड़ता और पुंछ उठाकर जंगल में मोनू की गुफा पर पहुँच जाता और मोनू को आँखे दिखाकर धमकता -</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">''अबे! ओय लंगड़दीन, आज तो अपने चमचों को मेरे पापा के पास भेजा है. अगर इसके बाद भेजा तो तेरा भुरता बनाकर तेरे ही चमचों से खा जाऊंगा.''</div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: justify;">बेचारा मोनु चुपचाप उसकी धमकी सुन लेता. शेरू उसे चुप देखकर ''लंगड़दीन, बजाये बीन'' कहता हुआ जंगल चला जाता. इस तरह समय बीतता चला गया.</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">एक बार शेरू शिकार की तलाश में भटकते भटकते मोनू की गुफा पर पहुँच गया. मोनू जंगली जानवरों के बच्चों से खेल रहा था. शेरू ने मोनू को आवाज दी ''अबे, ओय लंगड़दीन'' इधर आओ. ''तुम तो जानते हो राजकुमार मैं चल नहीं सकता.''</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">''चलो ठीक है मैं ही आता हूँ.'' शेरू मोनू के पास पहुँच गया और बोला- ''तुम गुफा में सो जाओ'' मैं इन बच्चो को नए नए खेल सिखाऊंगा. लेकिन मैं तो चल नहीं सकता. गुफा में कैसे जाऊं.'' मोनू समझ गया की शेरू को आज शिकार नहीं मिला. वह इन बच्चों को खाना चाहता है.</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">अचानक मोनू की नजर शिकारी पर पड़ी. शिकारियों के कंधे पर बंदूकें लटक रही थीं तथा वे कोलतार से हिरन का पुतला बना रहे थे. मोनू ने मन ही मन शेरू को आज दंड देने की योजना बना ली. पुतला बन्ने तक मोनू ने शेरू को बातों में लगाये रखा. जब पुतला बन कर तैयार हो गया. शिकारी अपना मोर्चा लेकर छुप गए'' मोनू ख़ुशी से उछला ''वो देखो राजकुमार. कितना मोटा व तजा हिरण. ऐसा काला हिरण तुमने सपने में भी नहीं खाया होगा.'' ''कहां है मोनू?''<br />
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''वो देखो उन झाड़ियों के पीछे. कितना काला है? हमारे दादा कहते थे की काला हिरण खाने वाला शेर सरे संसार का राजा बनता है."<br />
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''............मोनू. यदि ऐसा हुआ तो मैं सरे जंगलों में धूम मचाउंगा."<br />
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''सपने मत देखो राजकुमार. जाओ पहले उस हिरण को पकड़ कर खा लो.''<br />
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''अभी जाता हूँ.''<br />
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''ध्यान रखना, बहुत मुलायम होता है काला हिरण. पहले मुंह मत मरना. अपनी टांगों से अच्छी तरह से जकड़ने के बाद उसकी गर्दन पर पुरे जोर से झपट्टा मरना.''<br />
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शेरू ने आव देखा न ताव भाग कर उस काले कोलतार वाले हिरण पर कूद पड़ा. अपने हाथों पैरों से जकड कर ज्यों ही उसने हिरण की गर्दन पर जोर से पूरा मुंह खोल कर झपट्टा मारा, उसकी चीख सरे जंगल में गूंज गयी.<br />
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शेरू कोलतार के हिरण से उलझा तो उलझ कर ही रह गया. उसके हाथ-पैर व मुंह इस तरह से कोलतार से चिपक गए मनो किसी मजबूत रस्सी से बाँध दिया हो. शेरू दहाड़ें पर दहाड़ें मरता रहा. ''बचाओ!बचाओ!'' की आवाज से सारा जंगल गूंज रहा था.<br />
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शेरू की पुकार सुन कर शिकारी मोर्चे से बहार आये और शेरू को देखने लगे. उधर मोनू को दया आ गयी. उसने सोचा शेरू हमारा मित्र तो है चाहे बुरा ही सही. इसे सुधारना हमारा काम था, हम इसे सुधरने में असफल रहे. अब यदि इसे बचा लिया जाये तो यह सुधर सकता है तथा इसका उग्र स्वभाव भी नम्र हो सकता है.<br />
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मोनू ने मन ही मन शेरू को शिकारियों के चंगुल से बचने की योजना बना ली. मोनू रेंगता-रेंगता अपनी गुफा से बहार आया. वह रेंग कर उन शिकारियों के पीछे चला गया जो मोनू को पकड़ने की तयारी कर ही रहे थे. मोनू अपने पंजो के बल उछला और गुर्राता हुआ शिकारियों पर झपटा. शिकारी इस अप्रत्याशित हमले से घबरा गए. उनके हाथ से बंदूकें छूट गयी व मारे डर के सर पर पैर रख कर भाग खड़े हुए.<br />
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''मुझे बचाओ मोनू भैया, मुझे बचाओ.'' शेरू याचना करने लगा.<br />
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''धीरज रखो राजकुमार भईया, अभी सब ठीक हो जायेगा.''<br />
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मोनू रेंग कर अपनी गुफा में गया. वहां से माचिस लेकर सभी बच्चों को साथ लेकर शेरू के पास पहुँच गया. बच्चों को लकडिया लाने को कहा. बच्चे लकडियाँ ले आये और मोनू ने उन लकड़ियों को शेरू के नजदीक जमा दिया. मोनू ने अपनी जेब से माचिस निकाल कर लकड़ियों में आग लगा दी. आग जल रही थी और मोनू तथा सभी बच्चे शेरू के चरों और घेरा बनाकर बैठ गए. सभी के चेहरे पर चमक थी. कुछ देर बाद आग की तपन से कोलतार पिघल गया. शेरू आजाद हो गया. कोलतार से मुक्त होते ही शेरू दौड़ कर मोनू के क़दमों में गिर पड़ा.<br />
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''मुझे माफ़ करदो मोनू भईया, मुझे माफ़ कर दो. अब मैं कभी किसी असहाय को तंग नहीं करूँगा. किसी बच्चे व अपाहिज का शिकार नहीं करूँगा. मैं वादा करता हूँ मोनू भईया..........मुझे माफ़ कर दो.<br />
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मोनू की आँखों में प्रेम के आंसू आ गए. मोनू ने शेरू को गले से लगा लिया. शेरू ख़ुशी से उचल पड़ा. मोनू तथा सभी बच्चों को पीठ पर बैठा कर मोनू की गुफा पर ले गया. मोनू व शेरू गहरे मित्र बन गए. अब शेरू तथा मोनू बच्चों को खिलते. शेरू उनको पीठ पर बैठकर सैर करवाता.</div>प्रवीण पुरोहितhttp://www.blogger.com/profile/15341135725748045944noreply@blogger.com1